संवाददाता / संजय नामदेव
खिरकिया । दुनिया के साथ-साथ अपने देश को भी कोरोनावायरस से फैली महामारी ने हिला कर रख दिया है. इस समय देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की स्थिति है, ऐसी चुनौती देश के सामने शायद ही कभी आई होगी. जब इस तरह की चुनौती आती है तो उससे मुकाबला करने के लिए अलग-अलग स्तर पर नये-नये मापदंड भी तय करना पड़ते हैं. एक तरफ इस महामारी से निपटने की जिम्मेदारी डॉक्टर, नर्स और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों ने बखूबी संभाल रखी है तो दूसरी ओर आपदा की इस घड़ी में देश की शान्ति व्यवस्था बनाये रखना पुलिस की अहम जिम्मेदारी है. पुलिस महकमें की यह जिम्मेदारी इस लिए और बढ़ जाती है क्योंकि उसे मालूम है कि पुलिस प्रशिक्षण के दौरान ऐसे आपातकाल से कैसे निपटा जाये इसके बारे में उन्हें कोई दिशा-निर्देश ही नहीं दिए गए इसी प्रकार लाॅकडाउन का प्रयोग भी नया है, जिससे निपटने की भी चुनौती से पुलिस को दो-चार होना पड़ रहा है।
दिन रात पुलिस कर्मी रहेते हैं तैनात। पुलिस, किसी भी शासन-प्रशासन का एक ऐसा महत्वपूर्ण अंग है जो कि इस समय लाॅकडाउन, धारा-144, किसी इलाके को सील करने आदि की कवायद को मूर्त रूप दे रही है, इसके साथ-साथ कोरोनावायरस महामारी से देश को बचाने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग को महत्वपूर्ण बताया जा रहा है, जिसे लागू कराने की बड़ी जिम्मेदारी पुलिस विभाग की है. वह इसे बखूबी निभा भी रहा है लेकिन काम के बोझ के दबाव के चलते पुलिसकर्मी तनाव में तो आ ही रहे हैं, इसके अलावा तमाम पुलिसकर्मी कोरोना पाॅजिटिव भी होते जा रहे हैं, जो अलग से चिंता का कारण बना हुआ है।
नहीं है स्वास्थ के लिए कोई उपकरण। कोरोनावायरस महामारी जूझ रहे पुलिस कर्मियों के लिए शासन द्वारा उनके स्वास्थ्य के लिए कोई उपकरण उपलब्ध नहीं करा पा रही है जबकि पूरा देश कोरोनावायरस महामारी जूझ रहा है पुलिसकर्मियों द्वारा जनता की सेवा करने दिन रात 12 से 14 घंटे चेक पोस्ट तथा ग्रामीण अंचलों तैनात रहते हैं लेकिन उनके स्वास्थ्य के लिए शासन द्वारा कोई सुविधा नहीं की गई है।
मरीजों को पहुंचाना होता है अस्पताल। चिकित्सा कर्मचारी जब संक्रमित व्यक्तियों को आइसोलेशन अथवा क्वारेंटाइन में डालते हैं तब उनकी सहायता मौके पर मौजूद पुलिस ही करती है. स्वास्थ्य कर्मचारियों के पास मानक रूप से सुरक्षात्मक वस्त्र होते हैं, परंतु पुलिस के पास ऐसा कुछ नहीं होता है. इसलिए पुलिस का कार्य ज्यादा जोखिम भरा है. उसे कोरोना पाॅजिटिव को पकड़ने से लेकर अस्पताल तक पहुंचाना होता है. इस दौरान वह सीधे यानी शारीरिक रूप से ऐसे मरीजों के टच में रहता है, जो काफी घातक होता है. ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि हमारी पुलिस उन देशों से सीख ले जहां कोरोना का संक्रमण अपने देश से पहले फैला था. यह भी विचारणीय है कि अन्य देशों के कानून एवं व्यवस्था का सम्पादन भारतवर्ष से भिन्न है.
पुलिस के सामने एक नई चुनौती। यहां एक और घटना का जिक्र जरूरी है जब 22 मार्च को प्रधानमंत्री के आह्वान पर पूरे देश में जनता कर्फ्यू लगाया गया था जो काफी सफल भी रहा, परंतु सांय पांच बजे प्रधानमंत्री के आह्वान पर कोरोना की लड़ाई लड़ रहे योद्धाओं के समर्थन में लोग शंखनाद, घंटे-घड़ियाल और थाली बजाते हुए कई जगह जुलूस के रूप में सड़क पर निकल आए तो स्थिति काफी खराब हो गई. जिस कारण से उपरोक्त कर्फ्यू लगाया गया था, उसका उद्देश्य ही खत्म कर दिया. इसके बाद 24 मार्च से 21 दिन का लाॅकडाउन घोषित किया गया है जो अभी भी जारी है, इसके दौरान भी कानून व्यवस्था अपरिचित कारणों से प्रभावित हो रही रही है, जो पुलिस के सामने एकदम नई चुनौती थी.
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