विश्वविद्यालयों की अपनी एक अलग विषेशता और आवश्यकता है। आज जारी प्रेस विज्ञप्ति में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद हरदा के जिला संयोजक भूपेन्द्र सिंह तोमर द्वारा बताया गया कि छात्र हित एवं राष्ट्रहित का ध्यान में रखते हुए परिषद द्वारा महामहिम राज्यपाल के नाम कलेक्टर को ज्ञापन दिया गया
(संवाददाता राहुल जाट)
जिसमें परिषद द्वारा निम्न बिन्दुओं पर ध्यान आकर्षित किया गया। मध्यप्रदेश में सभी 21 शासकीय विश्वविद्यालयों की कार्यप्रणाली को डिजिटल मोड, ऑटोमेशन में लाने के उद्देश्य से एकीकृत विश्वविद्यालय प्रबंधन प्रणाली लागू की जा रही है। इस प्रणाली के माध्यम से प्रदेश के 24 लाख विद्यार्थियों का अकादमिक डाटा, विश्वविद्यालय के समस्त कर्मचारी और प्राध्यापकों का रिकॉर्ड एक ही प्लेटफॉर्म पर एकत्रित होगा। साथ ही विश्वविद्यालयों की दिन प्रतिदिन की गतिविधियां, परीक्षा नियंत्रण सिस्टम और अकाउण्ट भी इसके दायरे में आ जायेंगे। अभाविप का यह मानना है कि विश्वविद्यालय की गतिविधियों को डिजिटल मोड में लाना और ऑटोमेशन किया जाना एक स्वागत योग्य कदम है, लेकिन जिस तरीके से आई.यू एम.एस. कियान्वित किया जा रहा है तथा विद्यार्थियों और विश्वविद्यालय प्रशासन से संबंधित सभी गतिविधियों को नियंत्रण करने के उदेश्य से सभी तरह की सूचनाओं को एक ही प्लेटफार्म पर केंद्रित किया जा रहा है, इसे लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। इस प्रणाली के कारण कई विसंगतियां पैदा होगी और विश्वविद्यालयों की व्यवस्था प्रभावित होगी। सर्वाधिक महत्वपूर्ण यह है कि यह प्रणाली शिक्षा नीति की मूल भावना के विपरीत है। इससे संबंधित कुछ बिंदुओं पर अभाविप आपका ध्यान आकर्षित करना चाहती है- 1. सभी विश्वविद्यालयों की व्यवस्था को केन्द्रित करना, सूचनाओं को एक ही जगह एकत्रितत करना अव्यवहारिक और अनावश्यक कदम है। इसमें डाटा हैकिंग से संबंधित कई बड़े खतरे हैं। 2. मध्यप्रदेश विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 के सभी विश्वविद्यालय अकादमिक और प्रशासनिक व्यवस्थाओं के दृष्टिकोण से स्वायत्त इकाई है। आई.यू.एम.एस को संचालित करने वाल विश्वविद्यालय के हाथ में सभी विश्वविद्यालयों की व्यवस्था देना अनुकूल नहीं है। यह विश्वविद्यालयों की स्वायत्ता को लेकर भी कुठारघात है। 3. सभी वि वविद्यालयों का नियंत्रण किसी एक विश्वविद्यालय के पास रहेगा तो एकाधिकार की समस्या रहेगी।
व्यवस्था में कार्य परिषद ही निर्णय के लिए अधिकृत इकाई है। कुलपतियों के पास इसका संतोषजनक उत्तर नहीं है। 11. मध्यप्रदेश में आज भी ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में इंटरनेट की उपलब्धता एक समान नहीं है। प्रदेश में बड़ी संख्या में ग्रामीण क्षेत्र के विद्यार्थी भी उच्च शिक्षा में पढ़ रहे हैं। आई.यूएम.एस के 12. कई विश्वविद्यालयों के पास आज भी इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी को लेकर पर्याप्त इंफास्ट्रक्चर नहीं 13. आई.यू.एम.एस. को लागू करने के पूर्व विश्वविद्यालयों के कुलपतियों ने कार्य परिषद से अनुमति प्राप्त किए बिना एमओयू के लिए सहमति दी। क्या वह ऐसा कर सकते हैं ? विश्वविद्यालयीन 14. व्यवस्थाओं को डिजिटल करना स्वागत योग्य है, परंतु इस हेतु आत्मनिर्भर न होकर किसी और -15 . सभी विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों के डेटा के सुरक्षित होने की गारंटी क्या होगी ? अभी भी पर आधारित हो जाना यह विश्वविद्यालय के विकास में बाधा समान है। आई.यू.एम.एस. बिना किसी मंथन और विमर्श के लागू किया जा रहा है, जो छात्र हित में उचित नहीं है। कोई भी व्यवस्था केंद्रीकृत नहीं होनी चाहिए। 6. आई.यू.एम.एस. लागू करने के पूर्व विश्वविद्यालयों के समस्त हितधारकों , जिसमें विश्वविद्यालय के कर्मचारी, प्राध्यापक अधिकारी और छात्र भामिल हैं, उनसे कोई चर्चा नहीं की गई और न ही उनके सुझाव लिए गए। यह प्रजातांत्रिक प्रक्रिया के अनुकूल नहीं है। 7. प्रदेश के अधिकांश शासकीय विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों से संबंधित गतिविधियां पहले से ही एमपी ऑनलाइन के माध्यम से पेपरलेस मोड में संचालित की जा रही है। आई.यूएम.एस. माध्यम से उन्हें संचालित किए जाने का कोई औचित्य नहीं है। 8. सभी विश्वविद्यालयों की वेबसाइट विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा संचालित की जा रही है और विद्यार्थियों से संबंधित सभी जानकारियां वेबसाइट पर दी जा रही है। ऐसे में सभी विश्वविद्यालयों की जानकारियों को एक ही प्लेटफार्म पर ले जाना अव्यवहारिक है और अधिक जटिलता पैदा करेगा। 9. कुछ विश्वविद्यालयों में परीक्षा व्यवस्था आज भी पुराने तरीके से संचालित की जा रहीं हैं। उनमें कुछ सुधार यदि संभव है तो किया जाना चाहिए, लेकिन परीक्षा प्रणाली को ऑटोमेशन पर ले जाना परीक्षा की गोपनियता के दृष्टिकोण से उचित कदम नहीं है। 10. एक तरफ पूरे देश में व्यवस्थाओं को विकेंद्रित करने और अधिक स्वायत्ता करने को लेकर कदम उठाए जा रहे हैं। माध्यम से ये विद्यार्थी कैसे जुड़ेंगे। यह एक बडा प्रश्न है। है ऐसे में यह व्यवस्था किस तरीके से संचालित होगी।
16. कर्मचारियों ( वेतन ) विद्यार्थियों ( स्कॉलरशिप ) आदि का बैंक एकाउण्ट लिंक होने के कारण भी वृहत धोखाधडी की संभावना। 17. हम आज तक सभी विश्वविद्यालयों के पाठयक्रम में समानता नहीं ला सके। सभी रिक्त भौक्षिक व अशैक्षिक पदों की भर्ती नहीं कर सके। विश्वविद्यालय को मिलने वाले सालाना अनुदान में भी पिछली सरकार ने कटौती की है। ऐसे में हम कैसे आई यू.एम.एस. के स्वप्नों को साकार होते हुए देख सकते हैं। 18. ऑटोमेशन की व्यवस्था में प्रत्येक विश्वविद्यालय के लिए टेलरमेड सिस्टम होना चाहिए। उसमें छात्रों के द्वारा दी गई जानकारियों की सुरक्षा संबंधित विश्वविद्यालय के हाथ में ही होना चाहिए। 19. राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षण संस्थानों को अधिक स्वायत्ता प्रदान करने के प्रावधान किए गए हैं, ताकि उनमें भाोध और अध्यापन अधिक उपयोगी, प्रभावी हो सके। आई.यू.एम.एस. राष्ट्रीय शिक्षा नीति की इस मूल भावना के विपरीत है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद कुलाधिपति से अनुरोध करती है कि उपरोक्त बिंदुओं के संदर्भ में इंटीग्रेटेड यूनिवर्सिटी मैनेजमेंट सिस्टम की समीक्षा कर इसे निरस्त करने का कष्ट करें। यह व्यवस्था विश्वविद्यालयों की आंतरिक व्यवस्था में न सिर्फ जटिलता पैदा करेगी, बल्कि कई बिंदुओं पर व्यवहारिक भी नहीं है इससे विश्वविद्यालय की स्वायत्ता पर संकट आ सकता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में विश्वविद्यालयों की स्वायत्ता और अकादमिक वातावरण को अधिक सुदृढ , व्यवहार अनुकूल और अधिक स्वतंत्र करने के लिए दूरदर्शिता पूर्ण प्रावधान किए गए हैं। इंटीग्रेटेड यूनिवर्सिटी मैनेजमेंट सिस्टम से एक केंद्रीकृत और अधिक जटिल व्यवस्था पैदा होगी, जो नई शिक्षा नीति के प्रावधानों के अनुसार नहीं होगी। IUMS निरस्त नही किये जाने पर अभाविप उग्र आंदोलन हेतु बाध्य होगी। ज्ञापन के दौरान पवन जाट संदीप धनगर, अमित राठौर, शुभम हुरमाले, आयुष पराशर, अमन, पुरुषोत्तम, चंचल दुबे, पवन जाट, आयुष जाट, शौरभ जाट, ऋषभ राठौर, मयंक काले आदि उपस्थित थे।
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