संत श्री विनम्र सागर जी के अमृत वचन से मांस और मधपान का आजन्म किया त्याग
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समाचार लाइव न्यूज
अनिल उपाध्याय
खातेगांव
कोरोना जैसे समय मे समाज के लोगो को समृद्ध जीवन आपने दिया वे सारे के सारे लोग जो एसी व, कूलर , पंखे वाले कमरे से बाहर तक नही आये लेकिन आपने सड़के भी साफ की ओर लोगो का जीवन बचाने का काम भी किया , महाराज श्री विनम्रसागर जी महाराज ने जैन समाज खातेगांव चातुर्मास कमेटी खातेगांव द्वारा आयोजित 500 कोरोना योद्धा फ्रंटलाइन वॉलिंटियर के जीव दया सम्मान समारोह में अमृतमय वचन व्यक्त किये महाराज जी ने सभी सम्मानित लोगो से सवांद कर पूछा कि आपसे हम कुछ मांगेंगे तो क्या आप हमें दे पाएंगे , एक पल के लिए सम्मानित बन्धु असंमजस में पड़े तो संत श्री ने कहा की में आपसे आपकी जान नहीं मांगूगा क्योंकि जान की बाजी आपको अच्छे से लगाना आती है , ओर आपने कोरोना काल मे लगाई भी थी , में आपसे सिर्फ महर्षि वाल्मीकि के आदर्श ओर आचरण पर चलने के लिए केवल एक दिन मांग रहा हु, सप्ताह में सात दिन होते है केवल आप गुरुवार के दिन मांस और मद्य पान का आजन्म त्याग कर दे , तो सभी सम्मानित लोगो ने संत श्री के अमृतवचनों को स्वीकार कर दोनो हाथ ऊपर उठाकर आजन्म गुरुवार के दिन मांस और मद्य पान त्याग करने का संकल्प लिया , संत श्री ने सभी का इस संकल्प के लिए अभिवादन किया , आगे कहा कि आप अपने परिवार में जाकर बताए कि हमने आज से गुरुवार के दिन मांस और मद्यपान का आजीवन त्याग कर दिया है और अब आपकी जबाबदारी है कि आप हमारा इसमे सहयोग करे, संत श्री ने कहा कि आप अपने रिश्तेदारों को भी इसके लिए प्रेरित करे , संत श्री ने रामायण के बारे में वह वाक्या सुनाया जिसमे भगवान राम के आदेश पर जब हनुमान जी सीता जी की खोज के लिए गए तो विभीषण जी से मिलने के बाद अशोक वाटिका का रास्ता पूछा , अशोक वाटिका पहुचने पर माता सीता को प्रणाम कर कहा कि माता में रामदूत हनुमान आपकी कुशलक्षेम जानने के लिए आया हु तो , माता सीता ने कहा कि रावण की इस लंका में कोई रामदूत कैसे आ गया और में कैसे मानू की आप राम जी के ही दूत हो, इस प्रसंग को भी विस्तार से बताया ।
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